Publish Date: 13 Apr, 2025
Author: Anjum Qureshi
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Jallianwala Bagh: जलियांवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रैल 1919 के दिन हुआ था। बैसाखी के दिन हजारों लोग जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा के लिए इकट्ठा हुए थे। उसी दौरान ब्रिटिश सेना के जनरल रेजिनाल्ड डायर ने बगैर किसी चेतावनी के हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। करीब 10 मिनट तक 1650 गोलियां चलाई गईं। इसकी पीड़ा आज भी भारतीयों के सीने में है। आज जलियांवाला बाग हत्याकांड की 106वीं वर्षगांठ है। इस दिन पूरे देश ने नम आंखों से शहीदों को याद किया। आइए जानते हैं जलियांवाला बाग हत्याकांड पर दिल को छूने वाले और देशभक्ति के भावना से भरपूर कोट्स और शायरी।
जलियांवाला बाग हत्याकांड शायरी (Jallianwala Bagh Massacre Shayari)
रो उठीं बाग की दीवारें हर दिशा ख़ौफ़ से डोली थी,
ज़ालिम डायर ने जब खेली ख़ूँख़ार खून की होली थी,
गुमनाम शहीदों की गणना ख़ुद मौत न कर पाई होगी,
निष्ठुरता भी चीखी होगी, निर्ममता चिल्लाई होगी!
चलो फिर से आज वो नज़ारा याद कर लें,
शहीदों के दिल में थी जो ज्वाला वो याद कर लें,
जिसमें बहकर आजादी पहुंची थी किनारे पे,
देशभक्तों के खून की वो धारा याद कर लें!
रो उठीं बाग की दीवारें हर दिशा ख़ौफ़ से डोली थी,
ज़ालिम डायर ने जब खेली ख़ूँख़ार खून की होली थी,
गुमनाम शहीदों की गणना ख़ुद मौत न कर पाई होगी,
निष्ठुरता भी चीखी होगी, निर्ममता चिल्लाई होगी!
न इंतिज़ार करो इनका ऐ अज़ा-दारो,
शहीद जाते हैं जन्नत को घर नहीं आते!
शहादत की ख़ुशी ऐसी है मुश्ताक़-ए-शहादत को,
कभी ख़ंजर से मिलता है कभी क़ातिल से मिलता है!
मैं जला हुआ राख नहीं, अमर दीप हूं,
जो मिट गया वतन पर, मैं वो शहीद हूं।
कभी वह दिन भी आयेगा जब अपना राज देखेंगे,
जब अपनी ही जमीं होगी जब अपना आसमां होगा!
शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा!
किसी – किसी किस्से में आता है,
शहादत, नसीब वालों के हिस्से में आता है।
जलियांवाला बाग हत्याकांड कोट्स (Jallianwala Bagh Massacre Quotes)
जलियांवाला बाग सिर्फ एक मैदान नहीं, वो शहीदों का मूक मंदिर है।
जहाँ खून बहा था बेगुनाहों का, वहीं आज भी देशभक्ति की खुशबू आती है।
गोलियों से चीर दी गई थी चुप्पी, पर आवाज़ बन गई थी आज़ादी की।
जलियांवाला बाग की मिट्टी में आज भी उन शहीदों की साँसें बसती हैं।
इतिहास की सबसे स्याह रात थी वो, जब निहत्थे देशवासियों पर गोलियां बरसी थीं।
जलियांवाला बाग की दीवारें आज भी चीख-चीख कर इंसाफ मांगती हैं।
एक जनरल की क्रूरता ने कई पीढ़ियों की आत्मा को झकझोर दिया था।
वे निहत्थे थे, मगर झुके नहीं – यही है असली आज़ादी की परिभाषा।