Publish Date: 21 Mar, 2025
Author: Anjum Qureshi
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World Poetry Day 2025: विश्व कविता दिवस 21 मार्च को हर साल मनाया जाता है। यह दिन साहित्य और सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने और उन्हें संरक्षित करने के लिए मनाया जाता है। कविता समाज को जागाने का कार्य करती है। कविता अभिव्यिक्ति का सशक्त माध्यम हैं। कविता समाज के विभिन्न मुद्दों पर विचार व्यक्त करके उनमें सकारात्मक बदलाव लाने का एक माध्यम बनती है। कुछ कविताएं ऐसी हैं जो समाज में आज भी कांति का प्रतीक समझी जाती हैं। अक्सर आंदोलनों में उन कविताओं को पढ़ा जाता है। आइए पढ़ें ऐसी ही कुछ सदाबहार कविताएं।
कविता - हो गई है पीर पर्वत-सी
कवि - दुष्यंत कुमार
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
कविता - हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती
कवि - सोहनलाल द्विवेदी
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती
नन्ही चींटीं जब दाना लेकर चढ़ती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फ़िसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना, ना अखरता है
मेहनत उसकी बेकार हर बार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा जा कर ख़ाली हाथ लौटकर आता है
मिलते ना सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दूना विश्वास इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी ख़ाली हर बार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती
असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गयी, देखो और सुधार करो
जब तक ना सफल हो नींद-चैन को त्यागो तुम
संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जयजयकार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती
कविता - बाढ़ की संभावनाएँ सामने हैं
कवि - दुष्यंत कुमार
बाढ़ की संभावनाएँ सामने हैं,
और नदियों के किनारे घर बने हैं।
चीड़-वन में आँधियों की बात मत कर,
इन दरख्तों के बहुत नाजुक तने हैं।
इस तरह टूटे हुए चेहरे नहीं हैं,
जिस तरह टूटे हुए ये आइने हैं।
आपके कालीन देखेंगे किसी दिन,
इस समय तो पाँव कीचड़ में सने हैं।
जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में,
हम नहीं हैं आदमी, हम झुनझुने हैं।
अब तड़पती-सी गजल कोई सुनाए,
हमसफर ऊँघे हुए हैं, अनमने हैं।
ग़ज़ल - सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
शायर - बिस्मिल अज़ीमाबादी
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार
ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है
वाए क़िस्मत पाँव की ऐ ज़ोफ़ कुछ चलती नहीं
कारवाँ अपना अभी तक पहली ही मंज़िल में है
रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत रह न जाना राह में
लज़्ज़त-ए-सहरा-नवर्दी दूरी-ए-मंज़िल में है
शौक़ से राह-ए-मोहब्बत की मुसीबत झेल ले
इक ख़ुशी का राज़ पिन्हाँ जादा-ए-मंज़िल में है
आज फिर मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार बार
आएँ वो शौक़-ए-शहादत जिन के जिन के दिल में है
मरने वालो आओ अब गर्दन कटाओ शौक़ से
ये ग़नीमत वक़्त है ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है
माने-ए-इज़हार तुम को है हया, हम को अदब
कुछ तुम्हारे दिल के अंदर कुछ हमारे दिल में है
मय-कदा सुनसान ख़ुम उल्टे पड़े हैं जाम चूर
सर-निगूँ बैठा है साक़ी जो तिरी महफ़िल में है
वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है
अब न अगले वलवले हैं और न वो अरमाँ की भीड़
सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिल-ए-'बिस्मिल' में है
ग़ज़ल - हम देखेंगे
शायर - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिस का वादा है
जो लौह-ए-अज़ल में लिख्खा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिराँ
रूई की तरह उड़ जाएँगे
हम महकूमों के पाँव-तले
जब धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएँगे
हम अहल-ए-सफ़ा मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे
सब तख़्त गिराए जाएँगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ाएब भी है हाज़िर भी
जो मंज़र भी है नाज़िर भी
उट्ठेगा अनल-हक़ का नारा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज करेगी ख़ल्क़-ए-ख़ुदा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो